________चंपारण आन्दोलन_________
अंग्रेज बागान मालिकों ने चंपारण (बिहार) के किसानों से एक करार कर रखा था, जिसके अंतर्गत किसानों को अपने कृषिजन्य क्षेत्र के 3/20 वें भाग पर नील की खेती करनी होती थी। इसे तिनकठिया पद्धति के नाम से जाना जाता था। 19वीं सदी के अंतिम दिनों में रासायनिक रंगों की खोज और उनके बढ़ते प्रचलन के कारण नील की मांग कम होने लगी और उसके बाजार में भी गिरावट आने लगी। इसके कारण नील बागान मालिक चंपारन के क्षेत्र में भी अपने नील कारखानों को बंद करने लगे। किसानों को भी नील का उत्पादन घाटे का सौदा होने लगा। वे भी नील बागान मालिकों से किए गए करार को खत्म करना चाहते थे। किसानों से हुए करार से मुक्त करने के लिए बागान मालिक भारी लगान की मांग करने लगे। परेशान किसान विद्रोह पर उतर आए। यहां के राजकुमार शुक्ल ने किसानों का नेतृत्व संभाला।
1916 में राजकुमार शुक्ल ने लखनऊ जाकर महात्मा गांधी से मुलाकात की और चंपारन के किसानों को इस अन्यायपूर्ण प्रक्रिया से मुक्त कराने के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया। गांधी जी ने उनका अनुरोध स्वीकार लिया।
महात्मा गांधी, राजकुमार के अनुरोध पर चंपारन पहुंचे तो वहां कि अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें जिला छोडऩे का आदेश जारी कर दिया। गांधी जी ने इस पर सत्याग्रह करने की धमकी दे डाली, जिससे घबराकर प्रशासन ने उनके लिए जारी आदेश वापस ले लिया। चंपारन में सत्याग्रह, भारत में गांधी जी द्वारा सत्याग्रह के प्रयोग की पहली घटना थी।
चंपारन आंदोलन में गांधी जी के नेतृत्व में किसानों की एकजुटता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने जुलाई 1916 में इस मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया। गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया गया ।आयोग की सलाह मानते हुए सरकार ने तिनकठिया पद्धति को समाप्त घोषित कर दिया। किसानों से वसूले गए धन का भी 25 प्रतिशत वापस कराया गया।
चंपारन आंदोलन मे गांधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। तभी से लोग उन्हें महात्मा गांधी कहने लगे।
चंपारन में अन्य किन प्रमुख नेताओं ने भाग लिया...
चंपारन में गांधी जी के आंदोलन में राजेन्द्र कुमार, जीवी कृपलानी, महादेव देसाई, ब्रजकिशोर, नरहर पारिख भी शामिल थे।
________________खेड़ा आन्दोलन_____________
चंपारण के बाद गाँधीजी ने खेड़ा के किसानों की ओर ध्यान दिया. उन्होंने किसानों को एकत्रित किया और सरकारी कार्रवाइयों के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए उकसाया. किसानों ने भी गाँधीजी का भरपूर साथ दिया. किसानों ने अंग्रेजों किए सरकार को लगान देना बंद कर दिया. जो किसान लगान देने लायक थे उन्होंने भी लगान देना बंद कर दिया. सरकार ने सख्ती से पेश आने और कुर्की की धमकियाँ दी पर उससे भी किसान नहीं डरे. इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया. अनेक किसानों को जेल में डाल दिया गया.जून, 1918 ई. तक खेड़ा का यह किसान आन्दोलन (Kheda Movement) एक व्यापक रूप ले चुका था. किसान के इस गुस्से और निडर भाव को देखते हुए सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा और अंततः सरकार ने किसानों को लगान में छूट देने का वादा किया. पते की बात ये है कि इसी आन्दोलन के दौरान सरदार वल्लभभाई गाँधीजी के संपर्क में आये और कालान्तर में पटेल गाँधीजी के पक्के अनुयायी बन गए.
_____________असहयोग आन्दोलन___________
असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 में चलाया गया. इस आंदोलन को चलाने के पीछे कई अहम कारण थे. सन 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलट एक्ट पास किया गया जिसे भारतीय जनता ने 'काला कानून' की संज्ञा दी. रौलट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में एक सभा बुलाई गई जिसमें हजारों की भीड़ जुटी. वहां ब्रिटिश जनरल डायर भी अपनी टुकड़ी के साथ पहुंच गया और उसने निहत्थी जनता पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. जिस कारण हजारों की संख्या में मासूम बच्चे, स्त्रियां, पुरुष मारे गए.
ब्रिटिश सरकार के इस दुस्साहस से ब्रिटिश सरकार चौतरफा विरोध में घिर गई.तथा गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरोध में सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी. असहयोग आंदोलन 1920 से लेकर 1922 तक चला.1922 में चौरा चौरी कांड के कारण गांधी जी को असहयोग आंदोलन को वापस लेना पड़ा. अपने शुरुआती दौर में असहयोग आंदोलन चरम पर था तथा इसके अंतर्गत सरकारी पदों का, स्कूल का, सरकारी अदालतों का बहिष्कार करना, विदेशी वस्तुओं का परित्याग करना, शामिल था. लेकिन इस आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों द्वारा चोरा चोरी नामक स्थान पर हिंसा की घटना हो गई उनके द्वारा एक थानेदार और 21 सिपाहियों को जलाकर मार डाला गया. असहयोग आंदोलन गांधी जी के अहिंसा के रास्ते को छोड़ने लगा था इसी कारण सन 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया.
____नमक सत्याग्रह या दांडी यात्रा____
ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक बनाने पर लगाएं प्रतिबंध को तोड़ने के लिए महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया इस आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को हुई. इसके तहत गांधीजी ने दांडी मार्च निकाला.गांधी जी अपने 72 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से पैदल चलकर 24 दिनों में 240 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर दांडी गांव समुन्दर तट पर पहुंचे.गांधीजी ने समुंदर के किनारे पहुंचकर नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को तोड़ा. गांधी जी के नमक बनाने के बाद पूरे देश में नमक कानून को तोड़ा गया.
यही वह घटना थी, जिसके चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नज़र में आए. इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी.
यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. समाजवादी कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गाँधीजी को समझाया कि वे अपने आंदोलनों को पुरुषों तक ही सीमित न रखें. कमलादेवी खुद उन असंख्य औरतों में से एक थीं, जिन्होंने नमक या शराब क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ़्तारी दी थी.
नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेज़ों को यह अहसास हो गया था कि अब उनका राज बहुत दिन तक नहीं टिक पायेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना होगा.
गाँधी जी का किया यह आंदोलन भी सफल रहा.
__________भारत छोड़ो आंदोलन____________
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी जी द्वारा अगस्त 1942 में की गई थी. यह आंदोलन गांधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलनों में तीसरा बड़ा आंदोलन था. यह आंदोलन अब तक के सभी आंदोलनों में सबसे अधिक प्रभावी रहा तथा इस आंदोलन से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा. परंतु इसके संचालन में हुई गलतियों के कारण यह आंदोलन जल्दी ही धराशाही हो गया. इस अंदोलन को भारत में एक साथ शुरू नहीं किया गया था और यह यही अहम कारण रहा कि यह आंदोलन जल्दी ही धराशाही हुआ. इस आंदोलन के अंतर्गत भारतीयों को ऐसा लग रहा था कि अब हमें आजादी मिल ही जाएगी. उनकी इसी सोच के कारण आंदोलन कमजोर होना शुरू हो गया और जल्दी ही धराशाई हो गया. लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को यह एहसास करा दिया था कि अब भारत में उनका शासन और नहीं चल सकता उन्हें आज नहीं तो कल भारत छोड़कर जाना ही होगा.
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