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कुछ लाइनें बुरी सोच वालो के लिए "ब्रा ही तो है यार"जिसे देख तुमने उठाई शर्म की दीवार........

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कुछ लाइनें बुरी सोच वालो के लिए  "ब्रा ही तो है यार" जिसे देख तुमने उठाई शर्म की दीवार, एक लडकी के चरित्र को बताया दागदार यह तो बस एक साधारण सी ब्रा है दोस्त,!  जिनके नाम से टपकते हैं लार   वह तो है एक नारी का सिंगार,  ब्रा को इज्जत से मत जोड़ो   यह बस एक वस्त्र है मेरे यार,!    अगर तुम कपड़े के एक टुकड़े को  बताते हो हवस का जिम्मेदार तो दोस्त तुम दिमाग से हो बीमार, ब्रा हर एक महिला पहनती है  तुम ऊंचे रखो अपने विचार! मर्द की बनियान देखो तो वाह-वाह  औरत की ब्रा देखो तो धिक्कार,   सोचता हूं ऐसी सोच वालों को    निकालकर मारु जूते चार! मां पहनती है बहन पहनती है  पहनता है पूरा संसार,  बस कुछ गवाहों ने ब्रा को बना लिया   कीचड़ उछालने का हथियार! औरत की छाती निहारने वाले होते  हैं बेज्जती के असली हकदार, तुम खुद भी ब्रा लेकर देख सकते हो यदि करते हो तुम उनसे असली प्यार! किसी के पहनावे पर टोकने का  किसी को नहीं है अधिकार,  ब्रा को लेकर ताना मत कसो   ना करो किसी औरत को शर्मसार!  ...

कौन जात हो भाई? "दलित है साब"

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#कौन_जात_हो_भाई?  "दलित हैं साब!” नहीं मतलब किसमें आते हो? आपकी गाली में आते हैं गन्दी नाली में आते हैं और अलग की हुई थाली में आते हैं साब: मुझे लगा हिन्दू में आते हो आता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। ----------------------------- क्या खाते हो भाई? “जो एक दलित खाता है साब!" नहीं मतलब क्या क्या खाते हो? आपसे मार खाता हूँ  कर्ज़ का भार खाता हूँ  और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूँ  साब: नहीं मुझे लगा कि मुर्गा खाते हो! खाता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। ------------------------------- क्या पीते हो भाई? "जो एक दलित पीता है साब! नहीं मतलब क्या क्या पीते हो? छुआछूत का गम टूटे अरमानों का दम  और नंगी आँखों से देखा गया सारा भरम  साब: मुझे लगा शराब पीते हो! पीता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में। © कुमार विपिन मौर्य "पवन"

नींद और मौत में क्या फर्क है...?

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नींद और मौत में क्या फर्क है...? किसी ने क्या खूबसूरत जवाब दिया है.... "नींद आधी मौत है"         और  "मौत मुकम्मल नींद है"   जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है.... औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं। सुबहे होती है , शाम होती है उम्र यू ही तमाम होती है । कोई रो कर दिल बहलाता है और कोई हँस कर दर्द छुपाता है. क्या करामात है कुदरत की, ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है और मुर्दा तैर के दिखाता है... बस के कंडक्टर सी हो गयी है जिंदगी । सफ़र भी रोज़ का है और जाना भी कही नहीं।.....