तमाशों का क्या है वो हर रोज़ सड़कों पर होता है अमीर की लाठी में हर रोज़ ग़रीब का सर फूटता है ...
तमाशों का क्या है वो हर रोज़ सड़कों पर होता है
अमीर की लाठी में हर रोज़ ग़रीब का सर फूटता है
वो बन जाते हैं कुत्ता भी किसी का बिना दुम के हिलाते हैं
इन वर्दी वालों की जात ना पूछों इनको हमसे घिन्न आती है
भला ऐसे कहाँ कोई नक्सल बना जाता है
बना कर बेड़ियाँ हाथों में मन से मार दिया जाता है
ये अम्बानी का मॉल नहीं था जो ये चुप रहते
ग़रीबों के पेट पर लात मारने से क्यूँ रुक जाते
कितना कमा लेता ये बिटिया का बाप समझो
इनके देश में इनको ही मिट्टी का दिया भी ना बेचने देंगे
पिताजी इनके देश बेच दें फिर भी लबों से कुछ ना कहेंगे
इनकी छोटी सी ख़ुशियाँ लूट कर ये चैन से सोएँगे
भला ज़ुल्म इतना बड़ा था कैसे इनको छोड़ेंगे
कभी जी कुछ बन पाया मैं
इनको इनकी औक़ात दिखाऊँगा
जनता के नोकर हैं ये इनको सबक सिखाऊँगा
मुझे ना जाने इन लोगों से काहे दिल सुलगता है
पता नहीं क्यूँ मैं इनको देख मेरा ख़ून खोलता है
संभाल कर रखी है दर्द की जमात कबसे
तख़्त पलटने दे साहेब तुझको तेरी औक़ात दिखाएँगे
तमाशों का क्या है वो हर रोज़ सड़कों पर होता है
अमीर की लाठी में हर रोज़ ग़रीब का सर फूटता है।
©️ कुमार विपिन मौर्य
टिप्पणियाँ