"दधीचि एक अनकही दास्ता"

जिस उम्र में आदमी के पास सबसे अधिक ऊर्जा रहती है, कुछ करने का पूर्वज और उत्साह होता है और दुनिया को देखने समझने की सबसे ज्यादा जिज्ञासा होती है, मैं अपने जीवन का वह सबसे चमकदार और देश को आईएएस की फैक्ट्री देने वाले स्थान मुखर्जी नगर में रह रहे समस्त छात्र छात्राओं पर गुजरा होगा यही कारण है कि मैं अपने पहले उपन्यास में मुखर्जी नगर की यादें और गांव से आए हुए व्यक्ति को घुमाने के दौरान संघर्ष को उतार रहा हूं,
साहित्य के रचनाओं को लिखने के लिए उन में जान डालने के लिए हर लिखा कि अपनी अपनी अलग अलग शैली होती है, मेरे अंदर जो भी शैली है मैं इस कहानी के माध्यम से आप सभी श्रोताओं तक पहुंचाने की पूरी कोशिश कर रहा हूं मुझे उम्मीद है, मुझे उम्मीद नहीं बल्कि पूरा विश्वास है मुखर्जी नगर में अध्ययनरत एवं देश के विभिन्न जिलों में कार्यरत कलेक्टरों को इस समस्या का सामना अपनी तैयारी के दौरान करना पड़ा होगा,
यह उपन्यास मेरी मां मनोरमा सिंह, पिता संजय सिंह  जिन्होंने मुझे जन्म दिया और इस काबिल बनाया की मैं हिंदुस्तान के संस्कृति सभ्यता और अखंडता को समझ सकु।
प्रारंभिक शिक्षा से लेकर राजनीति संघर्षों तक साथ देने वाले मित्रों को समर्पित जिन के सहयोग के बिना यह उपन्यास पूरा नहीं हो सकता था।

मुखर्जी नगर जहां लाल बत्ती का हनक यूपी और बिहार के युवाओं को अपनी ओर चुंबक की तरह खींच लाता है वही पुराने राजेंद्र नगर से लेकर आनंद विहार तक ठेला लगा रहा व्यक्ति डीपीटी का अनुभव साझा करता है, यह वही मुखर्जीनगर है जहां यूपी और बिहार से आए युवाओं को लुक से ज्यादा बुक की चिंता होती है और  पार्टी से ज्यादा एनसीईआरटी की किताबों का पन्ना तेजी से पलटा जाता है वहीं मुखर्जी नगर है जहां कई बेटियों का हौसला परिवार से लड़का लाल बत्ती कहना के लिए मुखर्जी नगर कलेक्टर बन गया है, यहां लोग शाम को चाय और समोसे की दुकान पर बैठे जरूर होते हैं लेकिन वर्तमान भारत की अर्थव्यवस्था और अमेरिका की शोध संस्थान पर होती है, यह वही मुखर्जी नगर जहां की गलियों मैं चलता युवा खुद को आइए समझता है और समस्याओं को तुरंत हल करने का क्षमता रखता है यहां समस्याएं एम लक्ष्मीकांत की राजव्यवस्था और माजिद हुसैन की भूगोल जैसी है तो सुकून का पल एनसीईआरटी के हमारे अतीत जैसा है।
https://drive.google.com/file/d/16AbEt4si9eq08TBMJ2T7oooh9uCLNDW-/view?usp=drivesdk


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