चलते-चलते हमसे पूछा

सोनभद्र गया था जी हां वही सोनभद्र जहां पहले गांव नहीं हुआ करते थे यदि होते थे तो कहीं कहीं लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है सोनभद्र में लोगों का बसेरा बढ़ता जा रहा है लेकिन गांव दूर-दूर खींच रहा है यह कविता उन लोगों के लिए जो गांव से दूर जाकर गांव बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन बना नहीं पाते गांव में सब अपने होते हैं गांव की ओर भागी गांव से दूर नहीं।

चलते-चलते हमसे पूछा ,

अपने पांव के छालों ने ,,

 बस्ती कितनी दूर बना ली,

 दिल में रहने वालों ने,,

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