"मां तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो"यह सच है कि हिंदी साहित्य एवं हिंदी जगह से निकले अनेक कवियों ने मां के लिए बहुत कुछ लिखा है लेकिन उन्होंने जितना भी कुछ लिखा है वह कम लिखा है और मां के लिए जितनी भी लाइनें लखी जाएगी वह कम होंगी क्योंकि मां से ही हम लिखे गए हैं
मैं यह भी मानता हूं कि मैंने जो भी कुछ लिखा है वह विवादो में धीरे रहने के लिए काफी है लेकिन यह सच्चाई है आज की पहले की और आने वाले कल की।
मैं जो भी कुछ लिखता हूं वह सब वर्तमान स्थितियों को देख कर लिखता हूं और मेरी पूरी कोशिश होती है कि लोगों के अच्छाइयों के साथ-साथ उनकी बुराइयों को भी अच्छी तरह से लिखो मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हूं आप लोगों ने हर परिस्थितियों में मेरा साथ दिया है और मुझे इतना प्यार दुलार दिया है कि सिर्फ धन्यवाद से उसे हटाया नहीं जा सकता जितना या नहीं जा सकता।
पर यह मेरी नई कहानी "मां तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो"
मा तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो -
कुदरत की किसी मूरत सी लगती हो। प्यारी और बहोत खूबसूरत सी लगती हो, इतना कुछ जानकर अनजान सी लगती हो, माँ तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो |
एक छोटे से मकान को घर बना देती हो, कोई अगर कुछ कह दे तो चुप चाप सह लेती हो, खुद की फ़िक्र नहीं पर हमारा पूरा ध्यान रखती हो, माँ तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो | अपने सपनो को दबा कर मेरे सपनो को एहमियत देती हो, इस digital दुनिया में कुछ ना आने पर हसि का पात्र बन कर हमे हसाती हो माँ तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो|
खुद की फ़िक्र कभी नहीं पर मुझे जरा से बुखार अपने पर गीली पट्टी लेकर बैठ जाती हो, खुद की परेशानियों को भूल कर मेरा सर अपनी गोद में रख कर उसे कितनी प्यार से सहलाती हो, माँ तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो | खुद के लिए कभी कुछ नहीं लती पर मुझे सब कुछ दिलाती हो, शर्माती हो किसी से मिलने पर भी माँ क्यों अपना हाल छुपाती हो, माँ तेरे सामने क्या करीना क्या कटरीना क्या दीपिका हे, मुझे भोत अच्छा लगता हे जब कोई बोलता हे तू एकदम तेरी माँ जैसा दीखता हे | जो कदम मुझसे आगे हुआ करते थे आज वो मेरे साथ भी नहीं बल्कि लोगो के डर से मुझसे पीछे हुआ करते हे, माँ फिर से मेरा हाथ अपने हाथ में लो ना, इस दुनिया की भीड़ में गुम सा हो गया हु, फिर से पास बुलाओ न | जब छोटा था तो एक हाथ में तुम्हारा पल्लू हुआ करता था, अब बड़ा हो हुआ तो समय के साथ वो सब कुछ चला , माँ तुम वही हो बस में बदल गया |
#मां🙏
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