शब्द की मिट्टी से प्रेयसी तेरी मूरत गढ़ रहा हूँ

शब्द की मिट्टी से प्रेयसी तेरी मूरत गढ़ रहा हूँ
आज फिर से प्रेम की बिसरी कहानी पढ़ रहा हूँ 
कर रहा तुझको समर्पित फिर से वो सारे स्वप्न
और करता हूँ समर्पित ये अश्रु से भीगे नयन

ये विरह और वेदना का गीत फिर न गाऊंगा
फिर से दो क्षण बैठ तेरे केश मैं सुलझाऊंगा
जिसपे चलते साथ तुम जाने कब आगे बढ़ गयी
आज भी उम्मीद बांधे उस डगर पर बढ़ रहा हूँ

शब्द की मिट्टी से प्रियसी तेरी मूरत गढ़ रहा हूँ
आज फिर से प्रेम की बिसरी कहानी पढ़ रहा हूँ।

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