जो टूट कर जमी पर बिखर गए......
जो टूट जमीं पर बिखर गये
उन पत्तों से क्या वफ़ा करें
जो सुनने को तैयार नहीं
उन लोगों से क्या कहा करें
जो फेर के नज़रे बैठ गये
अब उनसे हम क्या दुआ करें
जैसा भी है सब ठीक ही है
क्यों हम ग़फ़लत में जिया करें
अरे आप का बहुत बहुत स्वागत है मरदे, सुनिए न महराज, अब आ ही गए हैं तब एक दूठे कहानियां पढ़ ही लीजिए अउर अ फोलो वाला ललका बटनवा टिप दीजिए न थोडा। अरे ऊ का है न ई जो आप के चेहरा के उदाशी हैं ना मरदे ऊ हमसे देखा नही जाता ईहे खातिर हम लेके आए हैं न ई अपना बलगवा ताकि तू मरदे बिंदास होके मुस्कुरा ज़वन भयल ह ओके छोड़ा खा पिया डाट के मुस्कुरा चाप के। कुमार विपिन मौर्य
टिप्पणियाँ