कुछ यादें और उन पर मेरी कलम
अ से अनपढ़, ज्ञ से ज्ञानी
तक का सफर हो तुम
बचपन का प्यार अधूरी जवानी हो तुम
हिन्दी हो तुम, हिन्दी हो तुम, हिन्दी हो तुम
अरे आप का बहुत बहुत स्वागत है मरदे, सुनिए न महराज, अब आ ही गए हैं तब एक दूठे कहानियां पढ़ ही लीजिए अउर अ फोलो वाला ललका बटनवा टिप दीजिए न थोडा। अरे ऊ का है न ई जो आप के चेहरा के उदाशी हैं ना मरदे ऊ हमसे देखा नही जाता ईहे खातिर हम लेके आए हैं न ई अपना बलगवा ताकि तू मरदे बिंदास होके मुस्कुरा ज़वन भयल ह ओके छोड़ा खा पिया डाट के मुस्कुरा चाप के। कुमार विपिन मौर्य
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