विश्व विजेता सम्राट अशोक के जन्मोत्सव पर विशेष.......
सम्राट अशोक जब मगध के शासक बने तब मगध साम्राज्य की सुंदरता खुद में मनमोहक था इस राज्य की सुव्यवस्था में चन्द्रगुप्त मौर्य की योग्यता, चाणक्य की नीति और बिंदुसार के सुप्रबंध के सारे गुण थे. राज्या भिषेक के आठवें वर्ष एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना घटी, जिसने अशोक के जीवन को ही नहीं, अपितु भारत के इतिहास को भी बदल दिया.
(फ़ोटो:- विश्व विजेता सम्राट अशोक महान)
जब जब पाटलिपुत्र में गृहयुद्ध हुआ तब तक अशोक में नेतृत्व किया और उस गृहयुद्ध को कुचलकर सुशासन की नींव रखी सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई राज्यों को जीता उन्होंने अफगानिस्तान से तमिलनाडु तक मगध साम्राज्य को फैलाया।
अशोक अब अपनी निपुणता से एक बड़े राज्य का अधिकारी थे. उसे शत्रुओं का भय नहीं था. राज्य में सर्वत्र शांति का साम्राज्य था. परन्तु अशोक को अपनी राजधानी से कुछ ही दूर एक छोटा सा स्वतंत्र राज्य खटकता रहता था.
उस राज्य का नाम था कलिंग. जी हां मैं बात उसी कलिंग राज्य कर रहा हूं जिस के युद्ध में सम्राट अशोक विजई जरूर हुए लेकिन उनका महात्मा बुध के तरफ ध्यान आकर्षित हो गया कहा जाता है कि कलिंग पहले कभी नंद साम्राज्य के अधीन था. किन्तु उसने अपनी शक्ति द्वारा उस पराधीनता से मुक्ति पा ली थी. अशोक के पराक्रम, सैन्य बल तथा नीति निपुणता से कई राज्यों ने मगध की अधीनता स्वीकार कर ली थी.
किन्तु कलिंग ने मगध की अधीनता स्वीकार नहीं की थी. यहाँ तक कि बिन्दुसार ने भी अपने दक्षिण के आक्रमण काल में कलिंग को छेड़ना उचित न समझा.
(फोटो:- सम्राट अशोक महान)
उसने कलिंग के तीन ओर के प्रदेशों को जीतकर उसे घेर अवश्य रखा था. अशोक ने प्रतिदिन बढ़ते हुए शक्तिशाली कलिंग को जीतने का निश्चय किया.
अशोक के संकेत पर मगध की विशाल सेनाओं ने पूरे जोश से कलिंग पर आक्रमण कर दिया. उधर से कलिंग राज की शक्ति शाली सेनाएं समरभूमि में आ डटी. महान नर संहार हुआ, कलिंग की ओर से कलिंगराज स्वयं अपनी सेना के सेनापति बने.
यह महायुद्ध कई महीने चला, कलिंग सैनिकों ने मगध सेना का डटकर मुकाबला किया. कलिंग की सेना संख्या में कम थी कलिंग राज के युद्ध में मारे जाने से इसकी हार हो गई.
इतिहास के अनुसार इस युद्ध में एक लाख कलिंगवासी वीरगति को प्राप्त हुए, डेढ़ लाख बंदी बनाएं गये, लगभग इतने की मगध सैनिक युद्ध में काम आए, हजारों की संख्या में हाथी और घोड़े मारे गये.
युद्ध स्थल पर जहाँ तक दृष्टि जाती थी, शवों के ढेर ही ढेर थे अथवा कराहते हुए आहत सैनिकों की दर्द चीखें सुनाई देती थी, घायल हाथियों का चिंघाड़ना और अधमरे घोड़ो को हिन हिनाना दृश्य को और अधिक करुण बना रहा था.
(फोटो:- एवं चंद्र द्वारा लिखित किताब "महानायक सम्राट") अशोक
कलिंग का पतन और अपनी विजय का द्रश्य देखने के लिए अशोक स्वयं रण भूमि में पंहुचा परन्तु इ स भीषण नरसंहार को देखकर अशोक का ह्रदय काँप उठा उसने मन मे विचारा इतनी हत्याएं इतनी सामग्री और धन का नाश किसलिए. केवल इसलिए कि एक स्वतंत्र शासक को अपने अधीन किया जाए.
इस विचार से अशोक के मन में ग्लानी उत्पन्न हुई. उसका ह्रदय उस दिन करुणा से पिघल गया. उसके ह्रदय में मानव के प्रति सद्भाव उत्पन्न हो गया. उसने पर्ण किया कि वह भविष्य में कभी रक्तपात नहीं करेगा, अपितु प्राणिमात्र के हित के लिए आजीव न प्रयत्न करेगा, अशोक की इस मानसिक क्रांति ने उसे भक्षक से रक्षक बना दिया.
यह वह घटना हैं, जिसने अशोक को हिंसा के छोर से उठाकर अहिंसा के छोर पर ला खड़ा किया. दिग्विजयी अशोक अब प्रियदर्शी और देवानापिय अशोक बन गया. उसने निश्चय किया कि किसी को शस्त्र कि शक्ति से जीतने की अपेक्षा उसे हार्दिक प्रेम से जीतना कहीं श्रेष्ठ हैं पशुबल की अपेक्षा धर्म बल इसमें कही अधिक सहायक हो सकता हैं.
इस घटना के बाद अशोक का ध्यान महात्मा बुद्ध व बौद्ध धर्म की ओर गया. युद्ध से विरक्त और उदास मन को शांति का संदेश बौद्ध धर्म से प्राप्त हो सकता था, इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ली.
नोट :- यह तस्वीर सम्राट अशोक क्लब के सदस्यों ने बनाया है
युद्धों की ओर प्रवृत होने वाला मन अब अहिंसा के पाठ से निर्लिप्त होकर दान पुण्य और धार्मिक कार्यों में प्रवृत होने लगा. युद्ध के प्रायश्चित के रूप में एकांतवास व् धार्मिक कार्यों में अशोक के दो वर्ष बीत गये.
दो वर्ष बाद उन्होंने आचार्य उपगुप्त का शिष्यत्व स्वीकार किया. इसके बाद शासन की ओर से बौद्ध धर्म के प्रचार के अथक प्रयत्न किये जाने लगे. सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के नियमों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी सारी शक्ति अहिंसा और इस धर्म की उन्नति और प्रचार प्रसार में लगा दी.
(नोट:- यह मेरा व्यक्तिगत लेख है मैं किसी भी राजनीति दल का समर्थक नही हूं मैं इस देश का युवा पीढ़ी हूं सच्चाई को लिखना और अपना अनुभव साझा करना मेरा प्रथम कार्य है)
© कुमार विपिन मौर्य
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