जब जब बात बेटियो के अधिकारों की आती है
जब जब बात बेटियों की आती है बेटों का हक काट दिया जाता है महिला सशक्तिकरण अच्छा है लेकिन बेटियो को अबल सिद्ध करने के लिए बेटों का हक काटना यह कहां का सही है बोर्ड ऑफ टेक्निकल एजुकेशन ने रिजल्ट जारी किया है बेटियां ज्यादातर पास है यह काबिले तारीफ है board of technical education की बात छोड़िए मैं अपने कॉलेज की ही बात कर रहा हूं बेटियो को आगे करने के चक्कर में हम बेटो को pretical में 17 से 45 नम्बर कम दिया गया है जबकि लिखित परीक्षा में बेटो ने कमाल का जलवा दिखाया है पहिले, दूसरे और तीसरे semester के topper को pretical में 17 number कम मिला है जबकि लिखित परीक्षा में ज्यादा नंबर है इस आगे में कई बेटियां भी झुलस गई है जो अबल होके भी अपने रिजल्ट को देख कर सोच रही है "यह क्या हो गया" अगर बेटों का हक मार कर बेटियों को आगे बढ़ाना सही है तो यह समानता का परिभाषा नहीं है शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में एवं रोजगार के क्षेत्र में हर जगह समानता की बात होती है तब प्रेटीकल का नंबर देने में यह बात क्यों ध्यान में नहीं रखा गया।
मुझे पता है इस post को पढ़ने के बाद मुझे डिसिप्लिन का नम्बर काटने का धमकी मिलेगा कोई सच्चाई को दबाने की राजनीती सदियों से चली आ रही है जो लोग चुप है वह खुद के भविष्य को अंधेरे मे धकेल रहे है बेटियो को बढ़ावा देना अच्छी बात है लेकिन बेटो का हक मार के बेटियो को आगे ले जाने से कभी समानता की बात नही किया जा सकता है आप अपने स्वय विवेक से सोचिए और अपने अंतः आत्म से पूछिए क्या यह सही है अगर यह सही है तो मुझे जो भी सजा दिए जायेगा वह मंजूर होगा कही यह सब देख कर देश के एक युवा का मानसिकता महिलाओं के प्रति ना बदल जाए मानसिकता उन्ही लोगो को बदलता है को सिस्टम से प्रताड़ित किए जाते है और इस मानसिकता को समाप्त करने के लिए कई साल लग जाता है लेकिन मानसिकता नही बदलती है।
NOTE:-मै सिर्फ बेटो का बात नही कर रहा हूं इस आग से कई बेटियो का अपना भी झुलस गया है किसी एक को आगे करने के दौड़ में कई बेटियो के अपनो को जला देना कहा कि समांनता है।
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नोट:- यह मेरा व्यक्तिगत लेख है मैं किसी भी राजनीति दल का समर्थक नही हूं मैं इस देश का युवा पीढ़ी हूं सच्चाई को लिखना और अपना अनुभव साझा करना मेरा प्रथम कार्य है)
© कुमार विपिन मौर्य
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