खैर अपनी शादी का बुलावा देना मैं आऊंगा जरूर
खैर अपनी शादी का बुलावा देना मैं आऊंगा जरूर एक ही निवाला सही खाऊगा जरूर, आखिर कब तक आंसुओं से पेट भरता रहुगा ऐसे कब तक तुझे याद करता रहूंगा, पूरी रात रुक के सातों फेरे देखूंगा मैं, वह सात वचन जब लोगी तुम ईश्वर की कसम जब लोगी तुम, तुम्हारी आंखों में शर्म देखनी है मुझे, आग की लपटें भी चीख उठे अग्नि इतनी गरम देखनी है मुझे, उस दिन के बाद हर रात नाचूंगा मैं जिस दिन तुम्हारी बारात में नाचूंगा मैं, कोई पूछेगा रुखसती के वक्त यह आंखों में आंसू क्यों नहीं, हंस के कह दूंगा मेरे महबूब की शादी है मैं नाचूं क्यों नहीं