संदेश

जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बाबा साहब,जिन्होने 130 करोड़ आबादी वाले भारत को कठोर एवं लिखित संविधान दिया

चित्र
बाबा साहब, जी हां वही बाबा साहब अम्बेडकर जिन्होने 130 करोड़ आबादी वाले भारत को कठोर एवं लिखित संविधान दिया जी हां वही बाबा साहब जिसकी प्रतिमा लंदन में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है, जी हां वही बाबा साहब जिसे विश्व के कई यूनिवर्सिटी ओं में पढ़ाया जाता है, जी हां वहीं बाबा साहब जिन्होंने आपको जीने की आजादी दिलाई आपको पढ़ने की आजादी दिलाई, जी हां वही बाबा साहब जिनके बदौलत आज आप सर पर बैठे हुए हैं, जी हां उसी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की बात कर रहा हूं जो भारत के पहले कानून मंत्री थे जिन्होंने राजनीति लोगों को अधिकार दिलाने के लिए चुना है, जी हां उसी बाबा साहब की बात कर रहा हूं जिनके ऊपर सबसे ज्यादा गाने और सबसे ज्यादा किताबें लिखी गई वही बाबा साहब जिन्हें विदेशों में हुक्म का इक्का माना जाता है और हर एक छोटे बड़े शिक्षण संस्थानों में पढ़ना अनिवार्य होता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है हम किस तरफ बढ़ रहे हैं वह बाबा साहब जिन्होंने अपना सब कुछ हमें हमारा अधिकार दिलाने के लिए कुर्बान कर दिया  वह बाबा साहब जिनके पिता ईस्ट इंडिया कंपनी में काम किया करते थे और उनका ब...

सपने सुहाने लड़कपन से लगाकरदेश न आना लाडो तक की कहानी है

चित्र
सपने सुहाने  लड़कपन से लगाकर देश न आना लाडो तक की कहानी है माँ का दुलार एक लड़की से , पिता की शान एक लड़की से, घर का मान एक लडकी से, भाई की राखी एक लड़की से, बहन की सखी एक लड़की से, पति का प्यार एक लड़की से, आशिक की की जान एक लड़की से,  औऱ मेरे घर की शान भी एक लड़की से। #बेटी 

मां तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो

चित्र
"मां तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो" यह सच है कि हिंदी साहित्य एवं हिंदी जगह से निकले अनेक कवियों ने मां के लिए बहुत कुछ लिखा है लेकिन उन्होंने जितना भी कुछ लिखा है वह कम लिखा है और मां के लिए जितनी भी लाइनें लखी जाएगी वह कम होंगी क्योंकि मां से ही हम लिखे गए हैं  मैं यह भी मानता हूं कि मैंने जो भी कुछ लिखा है वह विवादो में धीरे रहने के लिए काफी है लेकिन यह सच्चाई है आज की पहले की और आने वाले कल की । मैं जो भी कुछ लिखता हूं वह सब वर्तमान स्थितियों को देख कर लिखता हूं और मेरी पूरी कोशिश होती है कि लोगों के अच्छाइयों के साथ-साथ उनकी बुराइयों को भी अच्छी तरह से लिखो मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हूं आप लोगों ने हर परिस्थितियों में मेरा साथ दिया है और मुझे इतना प्यार दुलार दिया है  कि सिर्फ धन्यवाद से उसे हटाया नहीं जा सकता जितना या नहीं जा सकता। पर यह मेरी नई कहानी  "मां तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो" मा तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो - कुदरत की किसी मूरत सी लगती हो।  प्यारी और बहोत  खूबसूरत सी लगती  हो, इतना कुछ जानकर अनजान सी लगती हो, माँ तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो |...

यह जो हरि वादियां आप देख रहे हैं शायद हमारी आने वाली पीढ़ी इस हरिवादी को ना देख पाए

चित्र
यह जो हरि वादियां आप देख रहे हैं शायद हमारी आने वाली पीढ़ी इस हरिवादी को ना देख पाए यह पहाड़ कहीं खत्म ना हो जाए और यह हरे हरे पौधे एवं फूल हमारी पीढ़ियां ना देख पाए मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जिस तरह से पेड़ों और पहाड़ों की कटाई चल रही है अगर उस तरह से कटाई चलती रही तो कुछी सालो के बाद हम खुद इस मनमोहक दृश्य को नहीं देख पाएंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी "Google" पर सर्च मारेगी "How is the mountain" और आश्चर्य के साथ "Google" द्वारा प्रस्तुत की गई फोटो को देखकर कहेगी "Fabulous" और 4×6 के स्क्रीन पर रिश्ते निभाने वाली अंगुलियों से screen shot लेकर Stetus गलाएगी "Awesome place"  और गांव का ठेठ दिहाती जो मड़ई के नीचे बैठ कर गांव के चार लोगो के साथ हुक्का पीके और सूर्ति खाकर ठहाके लगाया करता था आज बेटे के द्वारा बनाए गए कुलर वाले घर में बैठा कर अपनी आखरी सासे गिन रहा है अपने पीढ़ियों को कोष रहा होगा " काश पेड़ लगल रह और पहाड़ न कटल रहत त हम्हू अपन आखरी सांस वोही हरिहर वादी में लेहित जवना में हम जन्मल रहली"। ज...

चलते-चलते हमसे पूछा

चित्र
सोनभद्र गया था जी हां वही सोनभद्र जहां पहले गांव नहीं हुआ करते थे यदि होते थे तो कहीं कहीं लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है सोनभद्र में लोगों का बसेरा बढ़ता जा रहा है लेकिन गांव दूर-दूर खींच रहा है यह कविता उन लोगों के लिए जो गांव से दूर जाकर गांव बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन बना नहीं पाते गांव में सब अपने होते हैं गांव की ओर भागी गांव से दूर नहीं। चलते-चलते हमसे पूछा , अपने पांव के छालों ने ,,  बस्ती कितनी दूर बना ली,  दिल में रहने वालों ने,,

"दधीचि एक अनकही दास्ता"

चित्र
जिस उम्र में आदमी के पास सबसे अधिक ऊर्जा रहती है, कुछ करने का पूर्वज और उत्साह होता है और दुनिया को देखने समझने की सबसे ज्यादा जिज्ञासा होती है, मैं अपने जीवन का वह सबसे चमकदार और देश को आईएएस की फैक्ट्री देने वाले स्थान मुखर्जी नगर में रह रहे समस्त छात्र छात्राओं पर गुजरा होगा यही कारण है कि मैं अपने पहले उपन्यास में मुखर्जी नगर की यादें और गांव से आए हुए व्यक्ति को घुमाने के दौरान संघर्ष को उतार रहा हूं, साहित्य के रचनाओं को लिखने के लिए उन में जान डालने के लिए हर लिखा कि अपनी अपनी अलग अलग शैली होती है, मेरे अंदर जो भी शैली है मैं इस कहानी के माध्यम से आप सभी श्रोताओं तक पहुंचाने की पूरी कोशिश कर रहा हूं मुझे उम्मीद है, मुझे उम्मीद नहीं बल्कि पूरा विश्वास है मुखर्जी नगर में अध्ययनरत एवं देश के विभिन्न जिलों में कार्यरत कलेक्टरों को इस समस्या का सामना अपनी तैयारी के दौरान करना पड़ा होगा, यह उपन्यास मेरी मां मनोरमा सिंह, पिता संजय सिंह  जिन्होंने मुझे जन्म दिया और इस काबिल बनाया की मैं हिंदुस्तान के संस्कृति सभ्यता और अखंडता को समझ सकु। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर राजनीति ...